Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 53
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर। ३७ नवाया मस्तक प्रभुके चरणाआदि प्रभु प्रगटे तारण ३॥ प्रथम इंद्रने लिये नाथ तब द्वितिय इंद्र ईशान ।। छत्र शिरधारा प्रभुके आनजी ॥ सनत्कुमार महेंद्र चमर दोऊ ढोरें इंद्र सुजान । शेप सुर करें जय जय भगवानजी॥ दोहा। नृत्य करें देवांगना, बाजें बहु विधि तूर ॥ चले जाय सुर गगणके, बीच शब्द रहा पूर ॥ जाहि सुन आनंद पाते करन ॥ आदि प्रभु प्रगटे ॥४॥ गिरि सुमेरु पर पांडक वनमें पांडु शिलापरं जाय॥ इंद्रने दिये नाथ पधरायजी । क्षीरोदधिसे नीर हेमघट ॥ . एक सहस्र वसु ल्याय । सुरोंने अन्हपाये जिन रायनी ॥ दोहा। एक चारि वसु जानिये, योजन कलश प्रमाण। सो ढारे जिन राजपर । हर्ष सुरोंने ठान । नाथको पहिराये आभरण ॥ आदि प्रभु प्रगटे तारण० ॥५॥ इस विधि कलशऽभिषेक इंद्र कर अवधि पुरीमें आय ॥ नाभि नृपको सोपे जिनरायजी ।वृषभनाथ कहि नाम इंद्रने - स्तुति मुखसे गाय ॥ शची युत भक्ति करी मनलायनी॥ दोहा। अमी अँगूठग मेलके, इंद्र नाय निज शीश ॥ दे अशीश गृह को गये, जयवंते हो ईश ॥ अवधिमें हर्ष हुआ घर घरनाआदि प्रभु प्रगटेतारण०॥६॥

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