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ज्ञानानन्द रत्नाकर। धर्म नौका में भवि जनको धार। करें भवोदधि पार ॥१॥ जिन सम देव अन्यको जगमें करे कमरिपुनाश । भ्रम तम हरन भानु जिनवानी तासम वचन प्रकाश ॥ ऐसे तो केवल जिनवर ही सार । करें भवोदधि पार ॥२॥ सेवत शत सुर राय हर्ष धर चरण कमल जिनराय। पूजत भविजन आय जिनालय बसुविधि द्रव्य चढ़ाय ॥ पूर्व पापों का करते संहार । करें भवोदधिपार ॥३॥ नाथूराम जिन भक्त ऐसे जिनवर को वारंवार । मस्तक नाय प्रणाम करें करनेको कर्म अप क्षार ॥ भक्ति जिनवर कोसुर शिव दातार । करें भवोदधिपार॥४॥
तथा ॥ ३२॥ जपो जिन राज नाम सच्चा । अन्य देव सब रागी द्वेषी मिथ्या मत स्वा॥
(टेक) कहत सब दया धर्मकी मूल । फिर हिंसा यज्ञादि में करते यह मूखोंकी भूल ॥ पड़ो उन वेद शास्त्रों पर धूल। जिनमें हिंसा धर्म प्ररूप्या शास्त्र नहीं वे शूल ।
दाहा। जो दुष्टों करकेरचे, काम क्रोध की खान । शास्त्र नहीं वे शस्त्र हैं, घातक निज गुण ज्ञान ॥ जैन विन अन्य वयन कच्चा । अन्य देव सव रागी ॥१॥ शस्त्र धारें क्रोधी कामी। या सेवक निर्बल शंकायुत सो