Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 77
________________ ज्ञानानन्द रत्नाकर। पर्याय लेन व्रत गिरि को धाईजी ।। जब मात पिताने सुनी अधिक दुःख पाया।महाराज बहुत राज समझाई जी। जब देखीपरमउदास उदासी सब को आईजी ॥ राजुलने दिक्षा लई जाय जिनवर पर॥ मृदु-केश उपाड़े नारि आप कोमल कर । महाराज किया दुधर तप भाराजी। गहिज्ञा न०॥४॥ कृश करके काय कपाय अमरपद पाया । महाराज बरेगी अब शिवरानी जी। श्रीनेमि वातिया पाति भये प्रभु केवल ज्ञानी जी ॥ बहु भव्यन को संबोधि अवाती पाते। महाराज सर्व भवकी थिति हानीजी । वर अविनाशी पद पाय दिया जगको कर पानीजी ।। कहें नाथूराम जिन • भक्त सुनो जग नाता निज भक्ति देहु अरुमेंटो सर्व असाता। महाराज लिया पद पद्म सहाराजी गहि ज्ञान चक्र० ॥५॥ __ अथ दर्शनाष्टक (दोहा) श्री जिनवरं करुणायतन , तुम सम और नदेव ॥ भव समुद्र तारण तरण , धन्य तुम्हारी टेव ॥१॥ इंद्रादिक सुर असुर सब , तुम सेवक जिनराज । तुम प्रसाद सब सफल हों , मन वांछित मम काज ॥२॥ भ्रमण करत संसार में, भयो मुझे चिरकाल ॥ करगहि अव भवसिंधुसे, कादों दीनदयाल ॥ ३॥ एक ग्राम पति दुख हरे, तुम त्रिभुवन पति ईश। यासे मम रक्षा करो,शरण लिया जगदीश ॥ १॥ वीतराग छवि परम तुम, धारी नाशा दृष्टि।

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