Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas
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ज्ञानानन्द रत्नाकर। ९५ अजित अजित अरि जीति वसु विधि शिव पद पायो॥२॥ संभव संभ्रम नाशि बहु भवि बोधित कोने ॥ अभिनन्दन भगवान अभिरुचि कर व्रत दीने ॥३॥ सुमति सुमति वरदान दीजे तुम गुण गाऊं॥ . पद्म प्रभु पद पद्म उर घर शीश नवाऊं ॥४॥ नाथ सुपारस पास राखो शरण गहों जी॥ चंद्रप्रभु मुखचंद्र देखत बोध लहों जी ॥६॥ पुष्प दंत महाराज विगशित दंत तुम्हारे ॥ . शीतल शीतल बैन जग दुखहरण उचारे ॥६॥ श्रेयान्स भगवान श्रेय जगति को कर्ता। बास पूज्य पद बास दीजै त्रिभुवन भर्ता ॥७॥ विमल विमल पद. पाय विमल किये बहु प्राणी ॥ श्री अनंत जिनराज गुण अनंत के दानी ॥ ८॥ धर्मनाथ तुम धर्म तारण तरण जिनेश ।। . शांतिनाथ अप ताप शांति करो परमेश ॥ ९ ॥ कुंथुनाथ जिनराज कुंथु आदि जीपाले ॥ अरह प्रभू आर नाशि बहु भवि के अब टालें ॥१०॥ माल्ले नाथ क्षण माहि मोह मल्ल शय कीना॥ मुनि सुत्रत व्रत सार मुनिगण को प्रभु दीना ॥ १३॥ नाम प्रभुके पद पद्म नवत नशेअप भारी॥ नेम प्रभू तजि व्याह जाय वरी शिवनारी ॥ १२॥ पारस सुवर्ण रूप बह भविशणमें काने॥

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