________________
।
३
ज्ञानानन्द रत्नाकर। वार वीर विधि नाशि ज्ञानादिक गुण लीने ॥ १३॥ चार बीस जिन देव गुण अनंत के धारी॥ करों विविध पद सेव मेंटो व्यथा हमारी ॥१४॥ तुम सम जग में कौन ताका शरण गही जै॥ यासे. मांगों नाथ निज पद सेवा दीजै ॥१६॥
दोहा। नाथूराम जिन भक्त का, दूरकरो भव वास ॥ जब तक शिव अवसर नहीं, करो चरण का दास ॥१६॥
श्री जिन वाणि नजिन पहिचानी ते मूर्ख मिथ्या श्रद्धानी ॥ टेक ॥ नृप विक्रम से प्रथम ही मुनिवर एक अंग के रहे नज्ञानी॥जहां ऐसी विक्षिप्त भई तहां द्वादशांग की कौन कहानी तिसपर काल दोष से राजा जिनमत द्वैषी अति अ. भिमानी२॥प्रगट भये तिन जिनशासन के फूंके ग्रंथ डुवाये पानी सोलखी परिहार प्रमरचौहान विप्र आज्ञाजिन मानी जैन नष्ट कर आप भ्रष्ट हो पल भक्षी भये मदिरापानी॥३॥ भूपति के आधार धर्म मर्याद भये सोतो दुनिी । तब तहां शुद्ध दिगम्बर मुद्रा किमि निवहें जहां नीति नशानी॥४॥ बन तजि जिन गृहका आश्रयले रहे कुचित मुनिजहां. तहां ज्ञानी सिंह वृत्य तजि स्यारवृत्य सजि श्रुताभ्यास में निज शचि सानी ॥५॥तिन फिर श्रुत संस्कृत पराकृत मति अनुसार रचे सुन प्रानी॥ तथा क्षिन्नग्रंथोंकाआश्रय