Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

View full book text
Previous | Next

Page 101
________________ ज्ञानानन्द रत्नाकर। पाय क्वचित रचना तिन ठानी ॥ ६॥ रक्त श्वेत अम्बरी दोडिया तथा दिगम्बर आदि निशानी ॥ धरि आचार्य मुनि भट्टार्क यती आदि पद संज्ञा आनी ॥ ७ ॥ तहां दि गम्बर मुनि भी गदि बंध भये यह बात न छानी ॥ देव सिंह नंदी रु सेन ये चार संग प्रगटे अगवानी ॥ ८॥ दिन प्रति शिथिलाचार बढ़ावत गये करी रचना मन मानी॥ गृह वासी हो राखि परि ग्रह वर्ति अवार रहे हो मानी।। ९॥ तिन भेपिन के कथित ग्रंथ बहु पढ़त सुनत श्रावकनितआनी करत परीक्षारंचन तिन की बने फिरें गाढ़े श्रद्धानी॥१०॥ प्रगट असंभव कथन जिन्हों में तथा विपर्यय रीतिवखानी 'कथन परस्पर मेल नखाता तो भी शुद्ध कहत जिनवानी११ जिनवर उक्त वचन जोइन में पाये जात कचित अमलानी।। सो उपकारक भवोदधि तारक जयवंतेवासुखदानी।।१२॥ श्वेतरसव लखत एक से कर कपूर कपास अज्ञानी । जै नाभास आप को मानत जिन आज्ञा सम्यक हममानी३३ भवसागर के पार करन को धर्म पोत निश्चय हम जानीहिद तर छिंद्र रहित आदिक गुण तामेलखनाबुद्धिसयानी॥१४॥ जिस नवका में चढ़त चहत निज करो परीक्षा तस भ्रम भानी औरन की निंदा करने में करो न आश बरन शिव रानी १५ त्यों ही ग्रंथों के देख दूर कीजे पहिचानी॥ नाथूराम काम यह पहिला मतवारा पनछोड़ो ज्ञानी ॥१६॥ इति ज्ञानानन्द रत्नाकर समान ॥ - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 99 100 101 102 103 104 105