Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

View full book text
Previous | Next

Page 97
________________ . ज्ञानानन्द रत्नाकर। ९३ वस्त्राभरण सजाय लायपुर तांडव नृत्य कियारी ॥ तात मातकोसोपे श्रीजिन नाथूराम भवतारी॥४॥ - कवित्त । सुनि जिन वानी जिनआनी निज उरमाहि तेही भव्य प्राणी शिवरांनी डर भाये हैं॥१॥ बसु विधि मलहर आपको विमल कर जन्म जलधि तरि शिवलोक पाये हैं ॥२॥ वसु गुण व्यवहार निहचे अनंत चार लोकालोक ज्ञाता जगत्राता कहलाये हैं॥ ३॥ नाथूराम सदा काल बसि हैं त्रिजग भाल तिनके सरोज पद अंग वसुनाये हैं ॥४॥तीनों लोक घूम आया तुझसा तो कहीं न पाया जैसा रूप गाया वेद शास्त्र बीच खासा है ।। आठो कर्म डारे चूर जगमें जो महाशूर मेरा दुःख होय दूर पूरे तर आशा है । त्रिभुवन पति पाया नाम फिर क्यों सिद्ध होन काम एक ग्राम पती बनी देत सो दिलाशा है । नाथूराम जिन भक्त जानत तू ज्ञेय व्यक्त बैग है मोक्ष वीच देखता तमाशा है॥२॥ __ पद ॥ १॥ सुर नर नाग खगेंद्र बंद मुनि तुम गुणगान करें। (टेक) पूर्व कृत दुःकृत सव हरके पुण्य भंडार भरें॥३॥ सम्यक दर्शन ज्ञान चरण लहि पुनि भवसिंधु तरें॥२॥ नाथूराम धाम बसि शिवके फिर जन्में न मरें॥३॥ • पद ॥१॥ शिखर सम्मेदके दरश करनको चलो भविकमनल्यायरेटिक

Loading...

Page Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105