Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas
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ज्ञानानन्द रत्नाकर। . ता प्रसाद त्रिय लिंग छेदके । भयो सुदेव रसाल ॥ स्थ चारित्र चलावन को तुम । सार्थक नेमि कमाल ॥ इंद्रादिक तुम चरण कमलको। नावत प्रतिदिन भाल॥३॥ करुणासिंधु दया कर जनके । काटो वसु विधि जाल । नाथूराम जिन भक्त तुम्हारी । नित्य जपें गुणमाल ॥४॥
__ श्रीपारसनाथ स्तुति ॥ २३ ॥
जपों मैं पारस प्रभु सुखकंद ॥ टेक ॥ उग्र वंश मणि अश्वसेन नृप । तिन सुत निभवन चंद्र। उरग चिह्न लखि प्रभु पद बंदों। होय कर्म रिपु मंद ॥३॥ जन्म पुरी शुभ नग्र वनारस । वामा देवी के नंद ।। अहि दम्पति तुम वचन सुनत भये । पद्मावति धरनेंद्र ॥ श्याम वरण तनु सजल जलद सम । दर्शत हो आनंद ॥ कमठ दुष्ट उपसर्ग किया तव । कीनी सेव फनेंद्र ॥ ३॥ तुम गुण माल जपत इंद्रादिक । गावत विरद गद्र! नाथूराम जिन भक्त जगतिसे। तारक तुमही जिनेंद्र ॥४॥
श्रीमहावीरस्वामीकी स्तुति ॥ २४ ॥ मैं वंदों सन्मति श्रीजिनदेव ॥ (टेक) महावीर महावीर वीर पति । पईमान स्वयमेव ॥ इत्यादिक बहु नाम तुम्हारे । नाहीं गुणों का छेव ॥१॥ भव तन भोग विनश्वर जाने । हेय गिनी जग टेव ॥ राज काज अब साज जान तज । कीना तप बहुभेव ॥२॥ . घाति कर्म हति जगदुख पाता। पतितन को दे ठेव ॥

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