Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas
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१२
ज्ञानानन्द रत्नाकर।
श्रीअरहनाथ स्तुति ॥ १८ ॥ अरह प्रभु मेरे आर करो चूर ॥(टेक) वसु विधि अघ निधि मोहादिक ये । महाबली अतिक्रूर ॥ दुर्ध्यानादि मित्र बहु तिनके । पृष्ट कुधी भरपूर॥१॥ तीन लोक में व्यापि रहे ये । शूरन में महाशूर ॥ तुमसे नाशि ये ऐसे भागे।ज्यों रविसे तम दूर ॥२॥ जयवंते जग माहि रहो प्रभु । बढ़े सुयश जगभूर ॥ जन्मन मरन जरा गद हरिके । राखो आप हजूर ॥३॥ इस संसार रोगके हो। तुमहि सजीवन मर ॥ नाथूरामका भवगद नाशो। बाजें आनंद तूर ॥ ४॥
श्रीमल्लिनाथ स्तुति ॥ १९॥ तुम्ही हो सांचे श्री मल्लेश ॥ (टेक) मल्लनि में महा मल्ल मोह भट । देत जगति को क्लेश ॥ ताको ध्यान गदा कर चूरो।क्षण में मल्लि जिनेश ॥१॥ काम महा भटको यों मारा। गज को यथा मृगेश ॥ अब प्रभु मरा हरा असाता। वदना रहे न लेश॥२॥ रहों सदा आरोग्य तुम्हारे । गाऊं गुण परमेश ॥ तुमसे दाता छोड़ दयानिधि । किसके जाऊं पेश ॥३॥ संकट मोचन विरद तुम्हारा । गावत सुयश सुरेश ॥ नाथूराम जिन भक्त दासपर । कीजे कृपा महेश ॥ ४॥
श्रीमुनिसुव्रतनाथ स्तुति ॥ २० ॥ त्रिजग पति श्रीमुनि सुत्रत देव ।। (टेक) श्रेष्ठ महाव्रत धारक जो मुनि । तिन पति तुम जिनदेव ॥

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