Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

View full book text
Previous | Next

Page 87
________________ ज्ञानानन्द रत्नाकर। ७१ अबतक प्रभु तुमको बिन जाने । भव २ लयो असमं ॥ नाथूराम जिन भक्त तुम्हारा । जाना अब प्रभु मम॥ ४॥ श्रीशांतिनाथ स्तुति ॥ १६ ॥ मैं वंदों जय जय शांति जिनेश ॥(टेक) भव आताप जगति जन दाहे । सहत प्रचुर नित केश ॥ ता नाशंन सम्यक जल वा । कीनी तुम परमेश ॥ १॥ कमौरंगके गलौंदयसे । वाधक रंक नरेश ॥ सो तुम वचन सुधाकर सींचे। कर विहार बहुदेश ॥२॥ शांति दशा तुम्हरी लखि हिंसक । सौम भये हरि शेश ॥ दया धर्म बहु जीवन धारा । सुनि प्रभु तुम उपदेश ॥३॥ तुम पद सेय बहुत भविं तरिगये । बहुतक भये सुरेश। नाथूराम जिन भक्त तुम्हारा । गावत सुयश गणेश ॥ ४॥ ॥ श्रीकुंथुनाथ स्तुति १७॥ जपों में श्रीपति कुंथु कृपाल ॥(टेक) कुंथू आदि सूक्ष्म जीवोंसे । गजतक महा विशाल ॥ तिन सबकी तुम रक्षा कीनी । सत्य कुंथु जगपाल ॥३॥ जीव दया मय धर्म प्रकाशक । नाशक वसुविधि जाल ॥ भासग ज्ञेय द्रव्य गुण पर्यय । युगपत तीनों काल ॥ २॥ कुंथुनाथ शुभ नाम तुम्हारा । सार्थक परम दयाल ॥ इंद्रादिक बुध तुम गुण गावत । नावत तुमपद भाल ॥३॥ . बहुतक जीवतरे अरु तरिहै । सुनि तुम वचन रसाल ॥ नाथूराम जिन भक्त धरी जिन । निजपट तुमगुणमाल ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105