Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas
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ज्ञानानन्द रत्नाकर।
श्रीसुमति नाथ स्तुति ॥ ५॥ सुमति प्रभु सुमति सुमति करो मेरी ॥ (टेक) कुमति सहित चिरकाल व्यतीतो। करत २ भव फेरी ॥ भव वन सघन विषे अति भटको । निज पुर वाट न हेरी॥ इंद्रिय विषयनमें रुचिठानी। दिन २ अधिक घनेरी॥ सुमति सुनारि दृष्टि नहीं आनी रमी कुमति नित चेरी२॥ कुमति कुमारग भटकाने को। मावस रैनि अँधेरी ॥ तुम मुख चंद्र लखत इम भागी। ज्यों मृगपति लखि छेरी।। अब सुमतीश ईश तुम महिमा । दिन दिन जग प्रगटेरी।। नाथूराम जिन भक्त तुम्हारे। नित्यरजो जय भेरी ॥४॥
. श्रीपमा स्तुति ॥६॥ जगति पति शोभित त्रिनगति भाल ।। (टेक) पद्म प्रभुपद पद्म प्रभालखि । पद्म प्रभा पामाल । क्षीण कला शशिंज्यों रवि आगे। भासत तज रंगलाल ॥ पद्म प्रभा तजि तुम पद पंकज । सेवत भवि अलि माल॥ पंकज प्राण हरे अलिके तुम । पद भवि अलि रक्षपाल २॥ ऐसे तुम पद पद्म प्रभा युत । लखि मन होत खुशाल ॥ ज्यों निर्धन पाये चिंतामणि । मानत हर्ष विशाल ॥ ३॥ कामधेनु सुरतरु चिंतामणि । तुम आगे क्या माल ॥ नाथूराम जिन भक्त व्यक्त तुम । त्रिभुवनके रखवाल men

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