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* દુર
ज्ञानानन्द रत्नाकर ।
देखत हग आनंद हो, दृढ़ आसन उत्कृष्ट ॥ ५ ॥ ज्ञाता दृष्ट्वा जगति के, जानत मम दुख आप । यासे क्या वर्णन करों, नाश करो भव ताप ॥ ६ ॥ विविध भाँति विनती करों, धरों चरण तल माथ । दुःख जलनिधि से काढ़िये, कर गहि करुणानाथ ॥ ७ ॥ तुम चरणाम्बुज मम हृदय, बास करों बसु ख़ाप । जब तक जग वासी रहों, मांगें नाथूराम ॥ ८ ॥ हजूरी (छप्पय )
देखे श्रीजिनराज आज विपदा सब भागी । देखे श्री जिनराज आज आतम रुचि जागी । देखे श्री जिनराज कार्य सीजे मन भाये । देखे श्री जिनराज आज सब पाप विलाये । दर्शतरविमुख श्रम नशो नेत्र कमल विगशित भये । धन्य आज दिवस मद अष्ट हरि अष्ट अंग तुमको नये ॥ १ ॥ देखे श्री 'जिनदेव सेव जिन करत सुरासुर । देखे श्री जिनदेव धर्म रथ बहन परम धुर || देखे श्री जिन देव पाप अताप विनाशक देखे श्री जिनदेव स्वपर तत्त्व के प्रकाशक | आनंदकंद जिन चंद्र प्रभु दर्शत हग हर्षत अमित । जन नाथूराम बंदतच रण परम सरम दातार नित ॥ २ ॥
श्री जिन दर्शन (दोहा)
दर्शन श्री जिनदेव का, नाशक है सब पाप || दर्शन सुर गति दाय है, साधन शिव सुख आप ॥ १ ॥ जिन दर्शन गुरुवंदना, इन से अघ क्षय होय ॥