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ज्ञानानन्दरत्नाकर। ५१ राई ॥२॥ णमों युग्म पद पद्म तुम्हारे । तीन भवन भवि तारण हारे । थकित अमर नर नारी । दर्शन हग देखेंना शति विपदा सारी ॥ धन्य २ सुर नर उच्चार । नवत चरण सब पाप निवारें ॥ पावें परम सुख भारी । फलदायक जग में तुम दर्शन सुखकारी ॥ बाप्तव गण धरादि गुण गावें। भली भांति गुण पार न पावें ॥ महिमा तिहूं जग छाई । ईश्वर त्रिजगति के पार करो जिनराई ॥३॥ युग चरणाम्बुज भृग करीजे । रक्षा कर निज सेवा दीजे | लीजे खबर जनकेरी । वर भक्ति तुम्हारी नाशकहै भव फेरी । शोभित तीन जगति के नायक । पट कायक जीवन सुखदायक ॥ सुधिलीजे प्रभु मेरी । हनियेविधि आठौ कीजे नहीं अब देरी ॥क्षण क्षण नाथूराम शिरनावें । त्रिभुवन पति थारे गुण गावें ॥ ज्ञान कला शुभ पाई । ईश्वरत्रिजगति के पारकरो जिनराई ॥४॥ . . . श्री नेमीश्वरकी लावनी ॥ ३७॥ यदुपती सती शुभ राजमती त्रिय त्यागी। महाराज जाय तप गिरिपर धाराजी । गहि ज्ञान चक्र कर वक्र मोह भटक्ष णमें माराजी॥
(टेक)
बल अतुल देख जिनवर का कृष्ण शकाने । महाराज रा जका लालच भारीजी। ताके वशहोके कृष्ण कुटिलताम नमें धारीजी ॥ करो नेमीश्वर का व्याह कही हरि स्याने।