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ज्ञानानन्द रत्नाकर सुन भाई, व्रत नंदीश्वर का रहे जहां शुभ ठाठ ॥
सपंट। दिन प्रति पूजा शास्त्र कथादिक होवें अधिकाई ॥ कटें पूर्व कृत पाप दृष्टि जब आते जिनराई ॥
झेला। धन्य जन्म उन्हींका सारा । देखें दर्शन प्रभु थारा । है यही मनोरथ म्हारा । नित दर्शन दो त्रय बारा ॥ यों विनती नाथूराम, करें वसुजाम, रखो निज धाम । मिटे भय मरण ॥ तुम हो त्रिभुवनके नाथ ॥ ४ ॥
शाखी। चितवत जिन नाम फल उपवास होत हजार जी। फल गमन करते दर्श को हो लाख प्रोषध सारजी ॥ हों कोड़ा कोड़ अनंत फल प्रोषध दरशते बारजी ॥ कर दरश नाथूराम ऐसे नाथका हर बारजी ॥
करो दर्शन जैनी निशि दिन । ग्रहो मत भोजन दर्शनविन। सार दर्शन बतलाया जिन। खबर इसकी मत भूलोछिन॥ समझ मन जो शिव की इच्छाानाथूराम मनधर यह शिक्षा
जिन दर्शनकी लावनी ॥ ३०॥ महाराज लाज रखो जनकी । जन चरण शरण आया। धन्य दिन तुम दर्शन पाया। लाज रखो जनकी ।