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- ज्ञानानन्द रत्नाकर। । अपूज्य नामी । दयायुत जो अंतर्यामी । सो क्यों हते • शस्त्र गहि पर जीहो त्रिभुवन स्वामी । ..
दोहा। नाश करे पर प्राण का, सो क्यों रहा दयाल । जैसे मेरी मात अरु, वांझ कहे यों बाल ॥ बांझ क्यों रही जना बच्चा । अन्य देव सब रागी ॥२॥ रमे ईश्वर निज पर नारी । तो कुशील का त्याग कहा क्यों यह अचरज भारी। गई मति मूखों की मारी। राग द्वैपकी खान तिन्हें कहें ईश्वर अवतारी ॥
दोहा। काम क्रोध वश जो मरें, सहें नरक दुःख आप। तिनको शठ ईश्वर कहें, सो कैसे हरें पाप । पड़े जो आप नरक खच्चा, अन्य देव सब रागी ॥३॥ सार एक वीतराग वाणी। जो सर्वज्ञ देव निज भाषी ।। त्रिभुवन पति ज्ञानी । जिसे हरि हल चक्री मानी ॥ सेवत शत सुर राय हर्ष घर सत गुरु वक्खानी॥
दोहा। जा वाणी के सुनत ही, होयजीव सुज्ञान। नाथूराम भव तजि लहें, निश्चय पद निर्वाण ॥ फेर नाजने ताहि जच्चा । अन्य देव सब रागी ॥४॥