Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 70
________________ ज्ञानानन्द रत्नाकर। चौवीसो तीर्थंकरकी लावनी ॥ ३३ ॥ दास कृत विनती चित धारो। आपतरे संसारोदधिसे अब मोहू तारो॥ (टेक) ऋषभ अजित संभव अभिनंदन सुमति २ दीजै ॥ पद्मप्रभु सुपार्स चंद्रप्रक्षु तिमर नाश कीजै ।।दासकृत ॥१॥ पुष्प देत शीतल श्रेयान्स बास पूज्य स्वामी। विमल अनंत धर्म श्रीशांति शांति करन नामीदास ०२। कुंथु अरह मल्लिनाथ प्रभू मुनि सुव्रत गुण गाऊं ॥ निमि नेमीश्वर पार्स नाथ सन्मति को शिरनाऊौदास ॥३॥ ऐसे जिन चौवीस जगत्रय ईश भजों बसु जाम ॥ नाथूराम भक्ति जिनकी से पावों अविचल ठामदास ॥४॥ देव धर्म गुरु परीक्षा की लावनी ३४ । करो देव गुरु धर्म परीक्षा शिक्षा हितकारी॥ . गुरु बार २ समझावें सब चेतो नर नारी ॥ (टेक) राग द्वेष मद मोह आदि जिनके वतै स्वयमेव । कामी क्रोधी छल धारी सो जानो सर्व कुदेव ॥ वीतराग सर्वज्ञ हितेच्छुक दे शिक्षा बहु भेव ॥ संसार भ्रमण नाजाके सो जानो सर्व सुदेव ॥ ऐसे लक्षण शुभ अशुभ देख पहिचान करो सारी ॥ गुरु बार २ समझा। सब चेतो नर नारी ॥१॥

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