Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas
View full book text
________________
ज्ञानानन्द रत्नाकर।
(टेक) प्रथम गर्भसे मास द्विगुण त्रय भई रत्नोंकी वृष्टि ॥ ... पंचदश मास अवधिकी सृष्टिजी।।हूंठ कोड़ि वयवार रन ॥ शुभ वर्षत आये दृष्टि ॥ करें संशय सुन मूढ़ निकृएजी॥
दोहा। इंद्र हुक्मसे धनदने, रची अवधि जिमि स्वर्ग ॥ . . . नव द्वादश योजन तनी, तामधि उत्तम दुर्ग॥ . . . कूप वापी तड़ाग बहुवरणाआदिप्रभुप्रगटेतारणतरणजी ३॥ त्रिविध ज्ञानसंयुक्त जन्मलिया मरुदेवीक लाल । मुकुट हरिका कंपातकालजी॥ साढ़ेबारह कोटि जातिके तूर बजे सब हाल ॥ . सप्त डग चल नाया हरि भालजी॥
इंद्र चले सुर साथले, करन जन्म कल्याण ॥ करत शब्द सुर गगनमें, जय जय जय भगवान ॥ नाथ तुम शोभित की नी धरना आदिपशु प्रगटेतारण.२॥ तीन प्रदक्षिणा दई नग्रकी इंद्र सुरोंके साथ । फेर तहांगये जहां जिन नाथजी । इंद्रानी हरि हुक्म लिआई जिनवरको निजहाथ । देख दर्शन नाया हरि माथजी ।
दोहा। निरखि रूप भगवानका, तृप्त हुवा ना इंद्र ॥ तब सुरेंद्र हग सहन कर, देखे आदि जिनेंद्र ॥

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105