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ज्ञानानन्द रत्नाकर | (टेक)
धरा योग तज भोग भई छवि परम हंस मूर्ति स्वयमेव ॥ वीतराग जिनदेव दिगम्बर तिन्हें कहें शठ नंगा देव || आप लिंग संकर का उमा की पूजें भग नर त्रिय कर सेव ॥ तिन्हें न नंगा कहें महानिर्लज्ज दुष्टों की देखो देव || शिव भक्तों के उरमें उमा की भग शिव लिंग समाया है ॥ हुआ दुखी संसार पाप से पाप जगत में छाया है ॥ १ ॥ वीतराग हैं नग्न मगर मस्तक पद तिनके पूजें परम || महादेव का लिंग पूजें जो नाम लिये आती है शरम ॥ बड़े सोच की बात दुष्ट शठ आपतो ये वद करें करम | वीतराग की निंदा करते जो जग में उत्कृष्ट धरम ॥ भई प्रगट मति भ्रष्ट जिन ने स्त्रिन से लिंग पुजाया है || हुआ दुखी संसार पाप से पाप जगत में छाया है ॥ २॥ देख तिलोत्तमा रूप वदन ब्रह्माने काम वश कीन्हें पांच ॥ धर नितम्ब शिर हाथ शंभु ने किया गवरके आगे नांच ॥ धरें नारिका रूप कृष्णजी फिर विरज में खोलें कांच | तज धोती लिया पहिन धांगरा लिखा भागवत में लो बांच॥ महाकामके धाम तीनों ऐसा पुराणों में गाया है ॥ हुआ दुखी संसार पाप से पाप जगत में छाया है ॥ ३ ॥ लोभ पाप का बाप जिस ने ब्राह्मण के घर कीना है बास || मिथ्या ग्रंथ वनाय धर्मशास्त्रों का कर दीना है नाश || भक्ति ज्ञान वैराग की तज कामी जो मति होना हैं खास ॥
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