Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 63
________________ ज्ञानानन्द रत्नाकर। सुगुरु वच श्रद्धा उर धारी। दुःख नाशक हितकारी ॥ लखत मुख मस्तक पद नायाजी। आनंद उरमें छाया॥ दया अव दया नाथ कीजै । निज चरण शरण दीजै ॥ दुःख मेरा जिसमें छीजै । सो करो सुयश लीजै ॥ नाथूराम निश्चय उर लायाजी। आनंद उरमें छाया॥॥ श्रीहदोंके जिन मंदिरके अतिशयकी लावनी ॥२९॥ श्रीश्यामवर्ण महाराज, गरीब निवाज, रखो मम लाज, मैं आया शरण ॥ तुम हो त्रिभुवनके नाथ जोड़ मैं हाथ न वाऊं माथ तुम्हारे चरणं ॥ (टेक) । तुम हो देवनके देव, देव करें सेव, सदा स्वयमेव तुम्हारी नाथ । सौ इंद्र नवामें भाल, दीनदयाल, तुमको त्रैकाल ॥ मैं नाऊं माथ । छवि तुम्हरी दर्शन योग्य, बहुत मनोज्ञ तजे भव भोग, तुमने एक साथ । श्रीवीतराग निदोप, गुगोंके कोष, हरो मम दोप, मैं जोड़ों हाथ ॥ _छड़। सुन भाई, श्रीवीतरागकी मूर्ति पूजो सदा ॥ सुन भाई, इति भीति भय विन होय ना कदा ॥ सर्पट। करें देव अतिशय नाना विधि हर्ष धार तनमें । तिन्हें देख आश्चर्यवान होते प्राणी मनमें ॥ . .

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