Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 51
________________ ज्ञानानन्द रत्नाकर। ३५ कहें भक्ति भोगोंमें विपय पोपण को नाम लीना है तास ॥ ईश्वरका ले नाम भोग कर पुष्ट करें निज काया है। हुआ दुखी संसार पापसे पाप जगत में छाया है ॥४॥ ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों ये काम क्रोध मायाके धाम ॥ वीतराग तीनोंसे वर्जित शुद्ध सार्थिक जिनका नाम ॥ पक्षपात तजि कहो धर्मसे इनमें कौन पूजनके काम ।। वीतराग या हरि हर ब्रह्मा कहें सभामें नाथूराम ॥ दुष्टोंका अभिमान हरन को यह शुभ.छंद बनाया है। हुआ दुःखी संसार पापसे पाप जगत में छाया है ॥५॥ शाखी। धन्य २ जिनवर देव जिनने निज धर्म प्रकाशा॥ जिसकी सुर नर पशु भवि के सुनने की आशा॥ घरे पंच कल्याण भेद सब सुनो खुलाशा। गर्भ जन्म तप ज्ञान किया निर्वाण में वासा ।। दौड़। भव्य ये सार पंच कल्याण । धरें जो चौबीसौ भगवान ॥ गर्भ जन्म तप ज्ञान रु निर्वाणासुरासुर पूजें तज अभिमान! जिनके सुनने से होय वर बुद्धानाथूराम पावो शिव मगशुद्ध ऋपानाथके पंचकल्याणकी लावनी ॥ २२॥ नाभिनदन तजि सदन चले वन शिव रमनीको वरन ॥ आदि प्रभु प्रगटे तारण तरण जी ॥

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