Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 49
________________ ज्ञानानन्द रत्नाकर। ३३ चतुरन काय देव नर खगपति जिन मूर्ति को करें प्रणाम। मन वच काय भाव श्रद्धायुत वंदत प्रभु छवि आ जिनधाम ऐसी मूर्ति पूज्य श्री जिनकी महापुरुप बदें वसु जाम ॥ तिनकी जो शठ निंदा करते अपराधी तिनका मुँह श्याम! जिनवर तुल्य मूर्ति श्री जिनकी यही पुराणों में आदेश । महापवित्र मूर्ति श्री जिनकी त्रिभुवनपति पूजते हमेश२॥ अधमकाल की यह विचित्र गति बढ़े दुष्ट पापी स्थूल ॥ मिथ्या ग्रंथ बनाय पाप मय धर्म ग्रंथोंका काटत मूल ॥ जैनी हो जिन वचन न मानें है मुखार उन के में धूल ॥ जिन मूर्ति की निंदा करतें आम्र काज बोवते बबूल ॥ महा नरक की सहें वेदना पर भव में ऐसे मूडेश। महापवित्र मूर्ति श्री जिनकी त्रिभुवनपति पूजते हमेशा॥३॥ हैं प्रत्यक्ष मूर्ति जड़ सवही किंतु पूज्य जिन का आकार।। राग द्वैष परिग्रह ना जिनके क्षमा शील लक्षणयुत सार॥ वस्त्र शस्त्र आभरण विलेपन कौतूहल नाना श्रृंगार ॥ . काम क्रोध लक्षण युत मूर्ति सो अवश्य पूजना असार ।। नाथूराम कहें जड़तो शास्त्र भी किंतु पूज्य जिन वचन विशेष महापवित्र मूर्ति श्री जिनकी त्रिभुवन पति पूजते हमेश॥४॥ कलियुगकी लावनी ॥ २१॥ कलियुग का करों व्यान वक्त जव से कलियुग का आयाहै।। हुआदुखी संसार पाप से पाप जगत में छाया है। Pho %3D -

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