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ज्ञानानन्द रत्नाकर। २७ विद्युतवाहनने किहकंद किया घायल मारी सिलतान ।। मूछों खाके भूमि पर गिरा मगर ना निकले प्राण ॥
चौपाई। तव लंकेश सुकेश उठाय । रखा किहकपुर में सो आय ॥ फिर पाताल लंकमें जाय । छिये सर्व ही प्राण बचाय ।
दोहा। असनवेग तब सेन ले, लौट गया निजथान ॥ फिर उदास हो भोगसे, धारातप बुधिवान ॥ सहस्रार पुत्रको राज तिन दिया किया निज वास विपन ॥ जिन शासन का लहों आधार न कल्पित कहों वचन॥६॥ सहस्रार ने लंकामें निर्यात सुभट राखा ताने । सहस्रारके भया सुत इंद्र नाम राखा वाने ॥ . सूर्यरज ऋक्षरज भये किहकंदके दो सुत गुण स्याने ॥ नग्र बसाके बसे किहकंदपुर के तब दरम्याने ॥
चौपाई। सूर्य रजके दो सुत भये । नाम वालि सुग्रीव सुलये ॥ ऋक्ष रज के भी दोमुत ठये । नल अरु नील नामतिनदये।
दोहा। निवसे वानर द्वीपमें, यासे कपि कुल नाम ॥ ये वन पशु वानर नहीं, विद्याधर गुणधाम ॥ विद्याके बल चढ़ि विमानमें करें सर्वां गगण गमन ॥ . जिन शासनका लहों आधार न कल्पित कहों वचन ॥७॥