Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas
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ज्ञानानन्द रत्नाकर। धर्मनाथ प्रभु धर्म धुरंधर धर्म तीर्थ करतारं प्रभू ॥.. प्रगटे धर्म जहाज नाथ किये भक्त भवोदधिपार प्रभू ॥ शांतिनाथ प्रभु शांति गुणोनिधि कामक्रोधकिये क्षार प्रभू दयासिंधु त्रिभुवनके नायक दुःख दरिद्र हरतार प्रभू ॥ कुंथु नाथ कुंथू गज सम जीवन के रक्षण हार प्रभू ॥ अधमोद्धारक भवोदधि तारक देनहार सुखसार प्रभू॥
चौपाई। अरहनाथ अरि कोने चरि। जिनके वचन सुधारस मूरि॥ मल्ल नाथ मल्लनमें भूरि । काम मल्ल हनि कीना दूरि॥
दोहा। सुनि सुत्रत महाराज जी , प्रभु अनाथ के नाथ ॥ कार्य सिद्धि मन कीजिये , नमों जोड़ युग हाथ ॥ . निमि प्रभु दीन दयाल मिटादो भव अरण्यका राश प्रभू । दीजै मुक्ति रसाल काटि विधिनाल रखो निज पास प्रभू ३. समुद्र विजय सुत नेमि गुणोयुत राजमती के कंत प्रभू ॥ यदुकुल तिलक शरण अगरणको देनहार सुख संत प्रभू । पारसनाथ बाल ब्रह्मचारी तप धारी सो महंत प्रभू॥ नाग नागनी जरत उवारे दे निज मंत्र तुरंत प्रभू॥ महावीर महाधीर महारिपुकाँका किया अंत प्रभू ॥ पावापुर से मुक्ति पधारे हो अंतम अरहंत प्रभू ॥
चौपाई। तीन काल के जिन चौवीस । त्रिविधि शुद्धध्याऊंजगदीश।

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