Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 41
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर। २५ .. दोहा। पुष्पोत्तर को तासने समझाया बहुभाय । अरु पद्माभाकी सखी, गई कही तहां जाय ॥ तात दोष ना श्रीकंठका वरा मैं ही याको आपन ॥ जिन शासनका लहों आधार न कल्पित कहो वचन ॥२॥ लौटगया खग कीर्तिवाल तव श्रीकंठको प्रीति दिखाय ॥ निवास करने वानर द्वीप तिन्हें दीना शुभराय ।। श्रीकंठ तहां गये बताया नम्र किहकपुर अति सुखदाय॥ वानर देखे तहां बहु केलि करत नाना अधिकाय ॥ __चौपाई। तिनने कपि पाले रुचि ठान । तिनसे क्रीड़ा करत महान।। रचे चित्र तिनके गृह म्यान । रंगर के लखि सुखदान ॥ . दोहा। ता पाछे बहु नृप भये, तिनभी कपिके चित्र॥ मंगलीक कारण विपे, थापे जान पवित्र ॥ वास पूज्यके समय अमर प्रभु भये भूपप्तो सुनो कथन । जिन शासनका लहों आधार न कल्पित कहों वचन ॥३॥ तिनकी रानी डरी भयंकर देख चित्र कपिके तब राय ॥ ध्वजा मुकुटमें कराये चित्र ग्रेहके दये मिटाय॥ तबसे ये कपिकेतु कहाये कंपि वंशी. उत्पतियों आय ॥ वानरं नाहीं नृपति नर विद्याधर हैं जानो भाय॥

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