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ज्ञानानन्द रत्नाकर। २३
चौपाई। तिनके पुत्र सुकेश सुजान । इंद्रानी तिसके त्रिय जान ॥ तीन पुत्र ताके गुणवान । भये सुधीर महावलवान ॥
दोहा। माली और सुमाली अरु, माल्यवान तिन नाम । सुमालीके रत्नश्रवा , पुत्र भया गुणधाम ॥ भई केकसी रानी ताके जासु कीत जगमें गाई ॥ तिसका वर्णन सुनो जो श्रवणोंको आनंददाई ॥५॥ रत्नश्रवा त्रिय केकसी के सुत तीन महा बलवान भये ॥ पहिला रावण दुतिय सुत कुंभकरण गुणधाम ठये ॥ त्रितिय विभीषण कुलके भूषण जिनने शुभगुण सर्व लये॥ तीनों योद्धा अनूपम तिनको भूप अनेक नये॥
चौपाई।
शूर्पनखा तिन बहिन प्रधान । भई अनूपम रूप महान ॥ खर दूषण परनी बुधिवान । वसे लंक पाताल सुजान ।।
दोहा। राक्षस द्वीप विषे बसे , विद्याधर गुणधाम । • यह वर्णन संक्षेप से , कहा सु नाथूराम ॥
पल भक्षक राक्षस ये नाहीं नर पवित्र जानो भाई॥ तिसका वर्णन सुनो जो श्रवणों को आनंददाई ॥६॥
वानरवंशीनकी उत्सति की लावनी ॥ १७ ॥ वानर वैशिन की जैसे उत्पत्ति भई सो सुनो श्रवन ॥