Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 38
________________ ज्ञानानन्द रत्नाकर। दोहा। : लवणोदधिके मध्य है , राक्षस द्वीप प्रधान ॥ . लंबा चौड़ा सातसौ, योजन तास प्रमाण ॥ । सब द्वीपोंमें द्वीप शिरोमणि जासु कीर्ति जगमें छाई ।। तिसका वर्णन सुनो जो श्रवणों को आनंददाई॥३॥ ताके मध्य त्रिकूटाचल योजन पचास ताका विस्तार॥ - ऊंचा योजन कहा नव तास तले नगरी सुखकार ॥ लंका योजन तीस तहां जिन भवन बने चौरासीसार।। सपरिवार से वहां निवसो तुम अरिगण का भयटार॥ चौपाई। अरु पाताल लंक शुभ थान । ठौरशरण का है सु प्रधान ॥ छन्योजन ऑड़ा परवान । है सुंदर स्थान महान ॥ दोहा। इक शत साढ़े तीसइक १३१ ॥ डेढ़ कला विस्तार ॥ यह कहि निज विद्यादई , अरु रत्नोंका हार ॥ बसे मेघवाहन तहां जाके कुटुम सहित तहां हर्षाई ॥ . तिसका वर्णन सुनो जो श्रवणों को आनंददाई॥४॥ ता राक्षस कुल में असंख्य नृप भये सोनिजकरणीअनुसार कोई शिवपुर गये किनहीं सुरके सुख लिये अपार कोई पाप कर गये अधोगति भ्रमतभये चउ गति दुःखकार . मुनि सुव्रत के समय में विद्युतकेश भये नृप सार ।

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