Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 36
________________ . २० ज्ञानानन्द रत्नाकर । सागर सीमा तजी सो भूपति पंथ अनीतिलहै ॥ रथ में बच्छा जुते सो बालक पन में धारें वृषका भार॥ भद्रबाहुने कहे तिनके फल सो वर्तते अवार ॥३॥ रत्न राशि रज से मैली सो यती परस्पर हो झगड़ा। भूत नाचते लखे सो कु देव पूजन होय बड़ा ।। इतनी सुन नृप चंद्रगुप्ति ने सुत सिंहासन दिया अड़ा। आप दिगम्बर भया गुरु संग लगा तप करन कड़ा । नाथूराम जिन भक्त कहे सोल स्वप्ने फल श्रुतानुसार ॥ भद्रबाहु ने कहे तिनके फल सो वर्तते अवार॥४॥ राक्षस वंशीन की उत्पत्ति की लावनी ॥ १६॥ अजितनाथ के समय मेघवाहन राक्षस लंका पाई॥ तिस का वर्णन सुनो जो श्रवणों को आनंददाई ॥ (टेक) विजयाई दाक्षिण श्रेणी में चक्र बालपुर नन बसे । नृप पूरण घन मेघ वाहन ताके शुभ पुत्र लसे॥ तिलक नगर का नृपति सुलोचन सहस्रनयन सुत तातनसे। कन्या उत्पलमती दोनों जन्मे सुंदर उन से॥ चौपाई॥ उत्पल मती पूर्ण घन जायनिज सुत को जांची मनलाया। वचन निमित्ती के सुनराय । दई सगर को सो हरपाय ॥ दोहा। तब पूरण धन सेनले , हना सुलोचन राय।

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