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ज्ञानानन्द रत्नाकर। १९ अभक्ष्य भक्षण तजो चित शील में निज साना चहिये । नाथूराम निज शक्ति प्रगट कर बनना शिव राना चहिये। जब तक शिव ना तब तलक नित जिन गुण गाना चहिये।।
चंद्रगुप्तके १६ स्वोंकी लावनी ॥ १५॥ सोलह स्वप्न लखे पिछली निशि चंद्रगुप्त नृप अचरजकार। भद्रवाहुने कहे तिनके फल सो वर्तते अवार॥
(टेक) सुर दुम शाखा भंग लखा सो क्षत्री मुनि व्रत नहीं धरें। अस्त भानु से अंग द्वादश मुनि ना अभ्यास करें। सुर विमान लौटत देखे चारण सुर खग ह्यांना विचरें। बारह फन के सर्प से बारह वर्षे अकाल परें। सछिद्र शशि से जिन मत में बहु भेद होंय ना फेर लगार।। भद्रबाहु ने कहे तिनके फल सो वर्तते अवार ॥१॥ करि कारे युग लड़त लखे सो वांछित ना वर्षे जलघर ॥ अगिया चमकत लखा जिन धर्म महात्म रहेलधुतर ॥ सूखा सर दक्षिण दिशि तामें आया किंचित नीर नजर ॥ तीर्थ क्षेत्र से उठे षं दक्षिण में रहती कुछ घर ॥ गज पर कपि आरूढ़ लखाकुल नीच नृपोकाहो अधिकार। भद्रबाहुने कहे तिनके फल सो वर्तते अवार ॥२॥ .. हेमथाल में स्वान खीर खाता सो श्री ग्रह नीच रहै। नृपसुत उष्ट्रारूढ़ सो मिथ्या मार्ग भूपवहै । विगशित पद्म लखे कूड़े में जैन धर्म कुल वैश्य गहै।