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ज्ञानानन्द रत्नाकर।
तथा ॥२॥ मुझे प्यारी लागे शिव प्रिया की नगरिया ॥ (टेक) जन्म नमरण जरा गद वर्जित भूमि तहांकीध्रुव सुख करिया। जाकारण गृह तजि बसि वन में कष्ट सहत अति मुनि तप
धरिया ॥२॥ जाकी आश करत इंद्राद्रिक कब आवे शिव गमन की परिया नाथूराम जिन बचन धरोउर सहन मिले शिवपुरकीडगरिया
कहरवा ॥१॥ आयाजी आयाजी आयाजी, मैं शरण तुम्हारे आयाजी(टेक) लख चौरासी योनि में जी पाया वहुपाया बहु दुःख ॥१॥ चारों गति दुःखधाम हैं जी कहीं नाहीं कहीं नाहीं सुखा॥२॥ दीनानाथ दीनको तारो दया कर दयाकर रुख ॥३॥ नाथूराम गया दुःख सवही देखा थारा देखाथारा मुख॥४॥
तथा ॥२॥ तारो जी तारो जी तारो जी, मुझे बहियां पकड़ प्रभु तारो जी ॥ (ट्रेक) यह भवसिंधु अतट अति गहराडूवें प्राणी डू। प्राणी गुप ॥ १॥ तारण तरण जान दृढ़ तुम ही तारो राख तारो राख उप ॥२॥ मेरा दुःख जानत तुम सबही रहा नाहीं रहानाहीं छुप ॥३॥ नाथूराम भरोसेथारे बैठे स्वामी बैठे स्वामी चुप ॥४॥
पद ॥१॥ श्री आदीश्वर जिनराज आज पति राखो जय २ जय स्वामी