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ज्ञानानन्दरत्नाकर।
तथा ॥६॥ जिन विषय विषम विष सम तजे धन्य वेही थी धारी ॥ टिक) करत अजान पान विष ता के प्राण हरत एक बारी॥ ये खल प्रवल गरल बल पल २ हनत निगोद सुडारी ॥३॥ इन वश जीव सदवि कीवहो आतम शक्ति विसारी॥ पर परणति रति मान कुमति लहि भयो कुगति अधिकारी एक अक्षवश गज झख अलि मृग होत पतंग दुःखारी॥ पंच करन मन धर सुर नर ये क्यों न भरें दुःख भारी॥३॥ ज्यों दव दहति लहति अति ईंधन गहति न तोषक दारी॥ त्यों इन चाह दाह पड़ प्राणी विकल अखिल संसारी ॥l! जो इन लीन मलीन क्षीण मति दीन मुहीनाचारी ॥ देह खेह का गेह येह तिन लागति नेह पिटारी ॥६॥ जिन इन भोग संयोग रोग का न्योग लखा सविकारी॥ नाथूराम शिवभाम धाम सो बसे राम रमतारी॥६॥
पद ॥१॥ स्वामी जी वतादो शिवपुर की डगरिया मुझे तो बतादो शिवपुरकी डगरिया ॥ (टेक) भ्रमत २ चिरकाल व्यतीतो शिवपुर का पथ दृष्टि न परिया॥१॥ जाकारण बहु जीव सताये, भक्ति कुदेवन की बहु करिया ॥२॥ अब कुछ काल लब्धि शुभ आई, श्रवण धरे जिन वच इस बरिया ॥३॥ नाथूराम जिनभक्त मिलेगी, निश्चय कर शि- . वप्रिया की नगरिया ॥४॥