Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर। ८३ . नाथूराम जिन भक्त जग्ति ताजि याहि वरें धी धारी॥ अविनाशी पद पावत सो ही तिन पद धोक हमारी ॥४॥ तथा॥ २॥ वसु कर्म परमरिपु नाशिये शुभ पाई हो वारी ॥(टेक) एकेंद्री विकलत्रय आदिक काय असेनी सारी ॥ ज्ञान विना बल रंचनचालो मर मर भयो दुखारी॥३॥ नारक गति खोटी मति तामें रौद्र ध्यान अधिकारी। पशु पक्षी कीटादि परस्पर घातक पापाचारी ॥२॥ काल पाय कोई सुलटें पशु हाय अनुव्रत धारी॥ तद्भव मुक्त होयना तहांसे यासे दुःखिया भारी ॥३॥ भोग भूमियां सुर संयम बिन हैं निकाम अवतारी ॥ आर्य नर पर्याय सयाने भवोदधि तारण हारी॥४॥ या तनु को सुरपति ललचत हैं ताहि पाय नर नारी ॥ · नाथूराम जिन भक्त करो तप तो परनो शिव प्यारी॥६॥ ... .. तथा ॥३॥ जिन वचन रत्न उर धारिये शुभ सम्पति हो भारी। (टेक) काम धेनु सुर तरु चिंतामणि चित्रावलि विचारी॥ एक जन्म इंद्री सुखदाता यह भव २ हितकारी ॥३॥ दर्शन ज्ञान चरण सम्यक युत रत्नत्रय सुखकारी॥.. निज गुण युक्त सम्हारि धरो उर प्रेम सहित नर नारी॥२॥ जिन बच सार असार और वच भ्रम युत मायाचारी॥ तिनको त्याग लाग शिव पथ से सुनि जिन ध्वनि धीधारी

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105