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— २४ ज्ञानानन्द रत्नाकर। जिन शासन कालहों आधार न कल्पित कहों वचन ॥
(टेक) विनयाई दक्षिण श्रेणी मेघपुर तहां खगपति शुभ नाम ॥ अतींद्रराजा पुत्र श्रीकंठ मनोहरा कन्या धाम ।। तही रत्नपुर नृप पुष्पोत्तर पद्मोत्तर ता सुत अभिराम ॥ कन्याताके एक पद्माभा मनु सुरपति की भाम॥
. चौपाई॥ मनोहरा पुष्पोत्तर राय । निज सुत को जांची उमगाय॥ श्रीकंठ कन्या के भाय । दई न ताको मने कराय॥ .
दोहा। । धवलकीर्ति लंका धनी, राक्षस वंशी भूप॥ . व्याही ताहि मनोहरा, लखि के अधिक अनूप ॥ पुष्पोत्तर खग श्रवण सुनत यह बहुत उदासी मानी मन ॥ जिन शासन का लहों आधारन कल्पित कहों वचन ॥१॥ एक दिना श्रीकंठ वंदना सुमेरुकी कर आते घर॥ पद्माभाका राग सुन मोहित हो तिहि लीनी हर॥ सुनत कुटुम जन तभी पुकारे पुष्पोत्तरको दई खबर ॥ क्रोधित होके तभी खग चढ़ां सेन ले ता ऊपर ॥
. चौपाई। श्रीकंठ लंकाको धाया। धवलकीति लखि अति हर्षाया। . सेन लिये तौलों खग आया। धवलकीर्ति सुन दूत पठाया।