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ज्ञानानन्द रत्नाकर।
पद ॥१॥ जो तुम को शिव आशा । बनो पंच परमपद दासा ॥ (टेक) जिनके जपत नशत अघ सबही, फेर न आवतपासा ॥१॥ या पुद्गलका कौन भरोसा, होय क्षणक में नाशा ॥२॥ सम्यक रत्न त्रय उर धारो, दाता शिवपुर बासा ॥३॥ नाथूराम जिन भक्त जपो नित,जब लग घट में वासा॥
तथा ॥२॥ इस जड़ तनु की क्या आशा । जो क्षण भंगुर यम यासा॥
. : (टेक). रज वीर्य से उत्पति जाकी, भरो रुधिर मल मांसा ॥१॥ जल बुल बुल सम विनशत क्षण में, कौन भरोसा वासा२॥ या कारण नित पाप करत क्यों, दाता दुर्गति बासा ॥३॥ नाथूराम जो शिव सुख चाहे, हो जिनवर का दासा ॥४॥
पद ॥१॥ शिव प्रिया को त्रिया निज जान के भंवि कीजे हो यारी ॥
. . (ट्रेक) जन्मन मरन जरा गद क्षायक दायक निज सुख क्यारी ॥ हर्ता शोक वियोग की,कर्ता अविचल सुख अविकारी ॥
देह खेहसे नेह लगाके घर घर बना भिखारी॥ · निज सम्पति पति होत न भोंदू हाहा घिग मति थारी॥२॥ 'तीर्थपति यासे रति चाहत ऐसी अनूपम नारी॥.
शंकित कर्म कलंकित यासे संत जनों को प्यारी॥३॥