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८० ज्ञानानन्द रत्नाकर। जिनवर कथित, क्षमादिक गुण युत, वसु विधिअरिहरतार जास प्रसाद, अधम शिवपहुँचे, घर २ वर अवतार । धर्म० दर्शन ज्ञान, चरण सम्यक युत, नाथूराम उरधार । धर्म०४
पद ॥१॥ लगोरी नेम प्रभु से प्रेम ॥ (टेक) ऐसा दया निधिरे, और नहीं है हो । जैसे जगजिपति नेम! जग असार लखिरे, गृह त्यागा है हो । करी पशुन पर क्षेमर विषय भोग येरे, दुःख दाता हैं हो। इनसे साता केम ॥३॥ नाथूराम अबरे, प्रभु तट जैहों हो । निज सुख पाऊं जेम॥
तथा ॥२॥ सखीरी नेनि शरण मैं तो जाऊं ॥ (टेक) पशु बंधन लखिरे, गृह त्यागा है हो। उन तट केश हुँचाऊं अब तपके बलरे,अशुभक्षिपैहों हो। त्रिय भवफेरन पाउंर तप सम जग मेंरे, और कहा है हो । तामें चित्त लगाऊ॥३ अब काहू विधिरे, ऐसा करि हों हो। नाथूराम शिव पाऊ४
तथा ॥३॥ प्रभूजी तुम देवन के देव ॥ (टेक) चौ प्रकार केरे, देव कहे हैं हो। सो करते पद सेव ॥१॥ देव पना है रे, सत्य तुम्ही में हो । नाहीं गुणों का छेव॥२॥ भवसागर कारे, पार नहीं है हो । धर्म पोत घर खेव ॥३॥ नाथूराम की रे, विनय यही है हो । प्रभुजनकी सुधि लेव४