Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas
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७८ ज्ञानानन्द रत्नाकर निरख निरख छवि वीतरागकी झुक नाचत पद ओरी॥३॥ नाथूराम जिनभक्त प्रभूसे मांगत फगुआ शिव गौरी ॥४॥
होली ॥२॥ राजुल नेमसे होली खेले हर्ष उर धार ॥ (टेक) परिग्रह पंक लगी अनादि से ताको हेय विचार । आतम अंग धोय सम्यक सर स्वच्छ किया अविकार ॥३॥ बारह व्रत भावना भूषण युत करके शील शृंगार॥ सुमति सखी ले संग सयानी, निज रंग छिड़कति सार ॥२॥ ज्ञान गुलाल लगावति अनुपम, गावति बहु गुणगारि॥ विविध विनय बाजिव बजावति, अंत भरे स्वर तार ॥३॥ निज पद फगुआ माँगति प्रभुसे लखि के चित्त उदार ॥ नाथूराम जिन भक्त भाव से नविरविविध प्रकार ॥ ४॥
उपदेशी पद ॥ १॥ चेतो प्राणी, शुभमति भैरे। मुनि जिन वाणी, शुभ मति भैरे
(टेक) मिथ्या तिमिर फटोप्रगटोरवि, सम्यक उर मुख दानी ॥शु० स्वपर विवेक, भयो उर अंतर निज परणति पहिचानी।।शु० सप्ततत्त्व जिन भाषित जाने, दृढ़ प्रतीति उरआनी शुभ नाथूराम जिन भक्त शिवेच्छा, प्रगटी निज रस सानी।।शु०
तथा ॥२॥ श्रीजिन वाणी, आनंद मेरे । शिव सुख दानी, आनंद मेरे।।

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