Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas
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७६ ज्ञानानन्द रत्नाकर। नाथूराम करे खास थारी जो सेवा.॥ ४॥
प्रभाती॥३॥ भज मन जिनराज कार्य सिद्धि होय तेरा ॥ टेक ॥ निशि दिन जपिये जिनेंद्र, अर्चत जिनको शतेंद्र ॥ वंदत चरणारवृंद मेटत भव फेरा ॥१॥ स्वार्थ विन कृपादृष्टि, राखत प्रभु परमइष्ट, जैसे भानु हरे सहज सृष्टिका अंधेरा ॥२॥ याही भव बन मझार, भ्रमोजीवानंत वार॥ प्रभु विन नालयो पार तज भव बसेरा ॥३॥ तजि अब जड़ जगति रीति, जिनवरसे करो प्रीति ॥ पाकर जिनमत पुनीत करो भव निवेरा ॥४॥ नाथूराम हो सुचेत, जिनवर से करो हेत ॥ जिनके पद कमल देत शिवपुर में डेरा ॥६॥
प्रभाती॥४॥ मानो भगवंत वैन यही ऐन करनी (टेक) हिंसा चोरी झूठ तजो, कुविसन मत भूल सजो॥ निशि दिन प्रभु नाम भजो सुरति ना बिसरनी॥१॥ जुआ आदि पाप खेल तजोनशा दुष्ट मेल॥ चलो नहीं पाप गैल सुख समाज हरनी॥२॥ दया सत्य वचन नीति, सज्जनसे करो प्रीति ॥ छोड़ो दुर्मति कुनीति सुक्ख की कतरनी॥३॥ मन देवच मानो हाल,यासे सुख हो त्रिकाल ॥

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