Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 29
________________ ज्ञानानन्द रत्नाकर। तथा॥४॥ मुझेहै यह विस्मय अधिकाय ॥(टेक) जा माया सेरे, तू हित चाहे हो । सो उलटी दुःखदाय ॥१॥ जाके भ्रम मेरे, तूप भूलो हो। धर्म वचन न सुहाया॥२॥ या माया नेरे, बहुत ठगे हैं हो। नर्क दये पहुँचाय ॥३॥ नाथूराम क्यारे, चेत नहीं हैहो । दुर्लभ नर पर्याय ॥१॥ मैंतो दासी थारी नाथ मोकों क्यों विसारीरे॥ दीजे नाथ दीक्षा रक्षा कीजिये हमारीरे ॥(टेक) प्राणपियारे वचन तुम्हारे, श्रवण सुनत उपजत सुख भारीरे बन पशु छोड़े, बंधन तोड़े, जग लखि हेय चढ़े गिरिनारोरेर करुणा कीजे, यह यश लीजे, दीजे शिक्षा निज हितकारीरे३ रजमति प्यारी, दिक्षा धारी, नाथूराम सुरलोक सिधारीरे॥ __ तथा ॥२॥ पाये स्वामी मैं तो आज शिव सुखदानी रे ॥ दीजै नाथ शिक्षा इच्छा मनमें समानीरे ॥(टेक) जग हितकारी, वानि तुम्हारी, सहज विमल शीतल जिमि . पानीरे ॥ १॥भव दुःख भारी, आप लखारी, ताकी मैं प्रभु कहों क्या कहानीरे ॥२॥हे जगत्राता मैंटो असाता । तुम पद सेय वरों शिवरानीरे॥३॥ भव दुःख पाता, तुमही विधाता, नाथूराम श्रद्धा उर आनीरे ॥४॥

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