Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 17
________________ ज्ञानानन्द रत्नाकर। १३ देखत होता दरश आनंद अधिकारी आंखों से ॥ ध्यानारूढ़ अकम्प दृष्टि नाशा परधारी आंखों से॥ . विस्मय होता देख छवि अचरजकारी आंखों से। देवों कृत शुभ अतिशय देखत सुख हो भारी आंखों से ॥ मोह नींद का गया आताप हमारी आंखों से ॥२॥ राग द्वेष मद मोह नशे तमभक्ति उजारी आंखों से ।। चिंता चंड़ी शक्ति संतोष से टारी आंखों से ॥ निज पर की पहिचान भई उर दृष्टि पसारी आंखोंसे ॥ जड मति मारी गई देखत धीधारी आंखों से॥ अब संसार निकट आयो जिन छवी निहारी आंखों से ।। मोह नींद का गया आताप हमारी आंखों से ॥३॥ सहस्राक्षकर निर्खत वासव छवी तुम्हारी आंखों से ॥ तृप्त न होता देख छवि महा सुखारी आंखों से ॥ भाज गई विपदा छवि देखत क्षण में सारी आंखों से ॥ कोई प्राणी दृष्टिना परेदसारी आँखोंसे। नाथूराम जिनभक्त दरश लखि कुमति विडारी आंखोंसे ॥ मोह नींदका गया आताप हमारी आंखोंसे ॥४॥ सिंदों की स्तुति लावनी ॥१०॥ अलख अगोचर अविनाशी सब सिद्ध वसत शिव थान में हैं। सर्व विश्व के ज्ञेय प्रति भासत जिन के ज्ञान में हैं। (टेक) ज्ञानावरणी नाशि अनंती ज्ञान कला भगवानमें हैं।

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