Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 18
________________ १४ . ज्ञानानन्द रत्नाकर। नाशि दर्शनावरण सब देखत ज्ञेय जहानमें हैं। नाशि मोहनी क्षायक सम्यक युत दृढ़ निज श्रद्धाण में हैं। अंतराय के नाश बल अनंत युत निर्वाण में हैं। आयु कर्म के नाश भये रहें अचल सिद्ध स्थानमें हैं। सर्व विश्वके ज्ञेय प्रति भासत जिनके ज्ञान में हैं ॥१॥ नाम कर्म हनि भये असूरति वंत लीन निज ध्यान में हैं। गोत कर्म हन अगुरु लघु राजत थिर असमान में हैं। नाशि वेदनी भये अवाधित रूप मन सुख खान में हैं। अपार गुण के पुंज अहंतन की पहिचान में हैं। अजर अमर अव्यय पद धारी सिद्ध सिद्ध के म्यान मेंहैं। सर्व विश्व के ज्ञेय प्रति भासत जिन के ज्ञान में हैं ॥२॥ अक्षय अभय अखिल गुण मंडित भाषे वेद पुराण में हैं। देह नेह विन अटल अविचल आकार पुमान में हैं। सर्व ज्ञेय प्रति भासत ऐसे ज्यों दर्पण दरम्यान में हैं। ज्ञान रस्मिके पुंज ज्यों किरणें भानु विमान में हैं। गुण पर्याय सहित युगपत द्रव्ये जानत आसान में हैं। सर्व विश्व के ज्ञेय प्रति भासत जिन के ज्ञान में हैं ॥३॥ तीर्थकर गुण वर्णत जिनके जो प्रधान मतिमानमेंहैं। . क्षमस्थन में न ऐसे गुण काहू पदवान में हैं। गुण अनंत के धाम नहीं गुण ऐसे और महान में हैं। धन्य पुरुष वे जो ऐसे धारत गुण निज कान में हैं। नाथूराम जिनभक्त शक्ति सम रहें लीन गुण गान में हैं।

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