Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas
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ज्ञानानन्द रत्नाकर। ११ आरति चिंता शोक गद स्वेद खेद जरा जन्म मरन । ' मोह, अगरह दोष रहित ऐसे जिनवर पंद करों नमन ॥ त्रिभुवन त्राता विधाता पाति कर्म जिन डाले हन । नाथूराम निश्चयं अनंत गुण सुमरत अब भाजंत. नमों ।। त्रिभुवन ईश्वर जिनेश्वर परमेश्वर भगवंत नमों ॥॥६॥
श्रीजिनेंद्रस्तुति लावनी ॥ ८॥ परम दिगम्बर वीतराग जिन मुद्रा म्हारी आंखोंमें ॥ बसी निरन्तर अनूपम आनँद कारी आँखोंमें ॥
(टेक) जा दरशत वर्षत सम्यक रस शिव सुखकारी आँखोंमें ॥ विषय भोगकी वासना रही न प्यारी आंखोंमें। जगअसार पहिचान प्रीति निज रूपसे धारी आंखों में ॥ तृष्णा नागिन जष्टि सन्तोषसे मारी आंखोंमें।. सब विकल्प मिट गये लखत जिन छवि बलिहारी आंखोमें बसी निरन्तर अनूपम आनंदकारी आंखों में ॥१॥ राग द्वेष संशय विमोह विभ्रमथे भारी आंखोंमें ॥ देखत प्रभुको लेश ना रहा उजारी आंखों में। कुयश कलंक रहा ना छवि लखि अचरज कारी आंखोंमें ।। यह प्रभु महिमा कहां यह शक्ति विचारी आंखों में॥ सहस्र नयन हरि लखत बाल छवि जिनवर थारी आंखोमें। वसी निरन्तर अनूपम आनंद कारी आंखोंमें ॥२॥ मंगलरूप बालक्रीड़ा तुम लखि महतारी आंखों में ॥

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