Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 14
________________ १. ज्ञानानन्द रत्नाकर तनुको गया न पड़ती नहीं कवला आहार ग्रहन । केवल ज्ञान भये दश अतिशय ये प्रभुक्के राजंत नमः ।। त्रिभुवन ईश्वर जिनेवर परमेश्वर भगवंत नमों ॥ २॥ सकल अर्थ मय मागयी भाषा नाति विरोष वजा जीवन!! पटनुके फल पुष्प दिनकर शोभित अति सुंदर बन !! पुष्प वृष्टि गंधोदक वर्षा भने मंद सुगंध पान ।। जय जय होते नन मेदिनी विराज्यों इपेण ।। र कमल सुर पद तल प्रभुके सर्व, जीव दर्पत नमों। त्रिभुवन ईश्वर जिनेश्वर परमेश्वर भगवंत ननों ॥३॥ विमल दिशा भानाम बिना कंटा अचला कोनी देइन । मंगल इव्ये आठ त्रय चक्र अगाड़ी चले गगन ये चौदह देखन कुन अविशय मुनो चनुष्य अब मन ।। अनंत वर्णन, ज्ञान, सुख, बल प्रमुख राजे नुचि बन !! ऐसे गुण भंडार विराजत गिव स्मगा अंत नमों ।। त्रिभुवन ईश्वर जिनेश्वर परनेश्वर भगवर नमः ॥ ४ तरु अशोक भानंडल साढे तीन छन अरु सिंहासन ॥ चमरदिव्य ध्यान पुष्प पारदुंदुभी नभ वाजन । प्रतीहार्य ये भाठ सर्व अलिग गुग जिन बरके पाइन । जो भविषारे कंठ नित सो न करें भगर्ने भाषन ॥ ऐसे श्री अरिदैत जिनके गुम गान करत नित पंत ननों ।। त्रिभुवन ईश्वर जिनेश्वर परमेश्वर भगवंत ननों ५॥ क्षुवा तृपा भय सग झेप विस्मय नित्र मदनमुहावन ।।

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