Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 11
________________ ज्ञानानन्द रत्नाकर। सुर नरके सुख भोगि बसु अरिहरिके भवसिंधु तरें॥ (टेक). प्रथम णमो अरिहंताणं पद सप्ताक्षर का सुनो विषय ॥ अरिहंतन को हमारा नमस्कार हो यह आशय ॥ अरिहंत तिनको कहें जिन्होंने घाति कर्म अरि कोने क्षय ॥ निज वाणी का किया उद्योत हरन भविजन की भय ॥ शेर-जिन्हों के ज्ञान में युगपत पदार्थ विजगके झलक। • चराचर सूक्ष्म अरु पादर रहे बाकी न गुरुहल्का भविष्यत भूत जो वते समय ज्ञाता घड़ी पलको अनंतानंत दर्शन ज्ञान अरु धारी, सुख बल के॥ तीन छत्र शिर फिरें डरें बसु वर्ग चमर सुर भक्ति करें। सुर नर के सुख भोगि बसु अरि हरिके भवसिंधु तरें ॥ दुतिय णमो सिद्धाणं पदके पंचाक्षर जो सार कहे ॥ सिद्धों के तई हमार नमस्कार हो अर्थ यहे ॥ सिद्धि चुके कर काम सिद्ध तिन नाम तृष्टि शिव धाम रहे। अष्ट कर्म का नाश कर ज्ञानादिक गुण आठ लहे ॥ . . शेर-धरें दिक्षा जो तीर्थंकर जिन्होंके नामको भजकर ॥ • करें हैं नाश वसुअरिका सबल चारित्र दल सजकर ॥ · नमों में नाथ ऐसे.को सदा ही अष्ट मद तज कर ॥ सफल मस्तक हुआ मेरा प्रभूके चरणों की रजकर ॥ लेत सिद्ध का नाम सिद्धि हों काम विघ्न सब दूर टरें। सुर नर के सुख भोग बसु अरि-हरिके भव सिंधु तरें॥२॥

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