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साध्वीजी श्री अमर श्रीजी, विद्या श्रीजी, मनोहर श्रीजी, मान श्रीजी, गुरुजी श्री भावश्रीजी की शिष्या श्री मुक्ति श्रीजी को प्रवर्तिनी पद से विभूषित किया जाता है। यह घोषणा त्रिस्तुतिक श्रीसंघ के वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य शासन दीपक मुनिराज श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण' महाराज ने की। चारों और से जय-जयकार के नारों से सारा वातावरण आनन्दित हो गया। पश्चात् जिन-जिन गुरुभक्तों ने बोलियों का लाभ लिया, प्रथम प्रवर्तिनी पद की कांबली वर्द्धमान विद्या पट्ट, भक्तामर का पट्ट आदि सामग्री गुरुणी श्री प्रवर्तिनी जी वोहराई।
इस प्रकार अपने साध्वी जीवन में प्रमुख दो ही कार्य रखे अपनी वरिष्ठतम गुरुणीजी की सेवा स्वाध्याय अध्ययन व चारित्र शुद्धता आप श्री ने अपने आराध्यपाद परमोपकारी श्री भाव श्रीजी की पूर्ण रूप से सेवा कर पुण्योपार्जन किया। श्री गुरुणीजी श्री मनोहर श्रीजी, विनयश्रीजी, कमलश्रीजी, हेतश्रीजी आदि की सेवा भी समर्पित भाव से की।
आपके जीवन का सुन्दर समय अपनी दीक्षा काल में चार आचार्य भगवन्तों की निश्रा प्राप्त की परम पूज्य साहित्य विशारद विद्याभूषण श्रीमद्विजय भूपेन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. अपने पूर्ण रूप से उपकारी धर्म, पिता श्री परम पूज्य व्याख्यान वाचस्पति साहित्याचार्य भट्टारक श्री श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी, आचार्य देव श्रीमद विजय विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी वर्तमान आचार्य देव श्रीमद्विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी चार आचार्य व दो उपाध्याय पद के पट्टपर विराजे अपने दीक्षा शिक्षा शुद्ध चारित्र दोष रहित पालने की प्रेरणा दाता परम पूज्य व्याख्यान वाचस्पति आचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्र विजयजी तत्कालीन उपाध्याय पद पर विराजित, उपाध्याय श्री गुलाबविजयजी