Book Title: Gunanurag Kulak
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay

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Page 315
________________ अपनी शृद्धांजलि अर्पित करते हुए भविष्य की यह कल्पना की थी कि आज श्री मोहनखेड़ा तीर्थ के अन्दर जो अस्थाई व्यवस्थाएं । हैं, वह सब स्थाई बने (पूज्य गुरुदेव की आत्मियता से की हुई . कल्पनाएं आज सभी साकार हो गई है)। चैत्र सुदि पूनम को इन्दौर निवासी सेठ श्री धनराजजी पारख की अध्यक्षता में विशाल जनप्रतिनिधि के मध्य समिति को अध्यक्ष श्री गंगलभाई संघवी को अभिनन्दन पत्र सहित जैन रत्न की उपाधिःदी गई एवं समिति के उपाध्यक्ष डॉ. प्रेमसिहं राठौर को अभिनन्दन सह जैन भूषण की पदवी दी गई। पश्चात् समिति के मंत्री श्री मांगीलालजी छाजेड़ को अभिनन्दन-पत्र अर्पण करके उनका अभिन्दन किया गया। यह गौरव की बात है कि मालवांचल से अखिल भारतीय त्रिस्तुतिक श्रीसंघ के मंच से सर्व प्रथम श्री मांगीलालजी छाजेड़ का अभिनन्दन होना अपने आप में एक आदर्शता रखता है। अंत में श्री गंगलभाई की अध्यक्षता में श्री राजेन्द्र जैन सभा के नाम से एक संस्था का गठन किया गया एवं मालव प्रांत के त्रिस्तुतिक समाज के उपाध्यक्ष पद पर श्री मांगीलालजी छाजेड़ का मनोनयन करके सभा विसर्जित हुई।, परम पूज्य आचार्य श्री ने मांगीलालजी छाजेड़ के श्रम से सफल समारोह के लिए आशीर्वाद देते हुए यह आदेश दिया कि महोत्सव गुरुकृपा से सफल हो गया, किन्तु समारोह को सफलता के लिए शताब्दी समारोह का आय-व्यय-पत्रक बनाकर समाज के सम्मुख रखना जरूरी है। गुरु आज्ञा को मानकर समारोह का आय व्यय पत्रक बनाने की तैयारी करने लगे।

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