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- परमपूज्य व्याख्यान वाचस्पति आचार्यदेव श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने फरमाया विद्या इधर आओ। मुनिराज श्री विद्याविजयजी म.सा. हाथ जोड़कर गुरुदेव के सम्मुख खड़े हुए एवं वरिष्ठतम मुनिप्रवर श्री लक्ष्मीविजयजी म.सा. को भी पास बुलाया। परमपूज्य आचार्य श्री ने वासक्षेप हाथ में लेकर फरमाया लक्ष्मीविजयजी में आज अपनी अस्वस्थता के कारण आज से मेरे उत्तराधिकारी के रूप में विद्या को आचार्य घोषित करता हूं और तुम सब इसका योग्य समय देखकर पाटोत्सव करके आचार्य पद पर बैठा देना। साथ ही श्री कल्याणविजयजी और श्रीदेवेन्द्रविजयजी को उपाध्याय पद देता हूं और जयन्तविजय को उपाचार्य पद देता हूं। उपस्थित श्रीसंघ सहसा इस घोषणा से विचारमग्न हो गया आचार्य श्री ने मुनिमण्डल व श्रीसंघ के सम्मुख वासक्षेप डालकर श्री विद्याविजयजी को चादर भी ओढ़ा दी। मुनिमंडल व श्रीसंघ अनेक प्रकार से विचारमग्न हो गया उस समय परम पूज्य आचार्य देव श्री ने फरमाया मुहरिर कहा है (पूज्यवर मुहरिर श्री मांगीलालजी छाजेड़ को कहते थे) मांगीलालजी छाजेड़ पूज्य पाद गुरुदेव श्री की सेवा में सम्मुख खड़े थे। वृद्धावस्था के कारण ज्योति कम हो गई थी। छाजेड़जी बोले गुरुदेव में सेवा में हाजिर हूं। पूज्य आचार्य श्री बोले कन्हैयालालजी कहाँ है, श्री कन्हैयालाल जी कश्यप रतलाम वाले भी आचार्य श्री के सम्मुख खड़े थे। देखो मैने मेरी जिम्मेदारी पूरी की और आप दोनों महानुभाव से मेरी यह आज्ञा है योग्य समय देखकर पाटोत्सव करके आचार्य पद पर विद्या को बिठाने की जिम्मेदारी तुम्हें सौंपता हूं।