Book Title: Gunanurag Kulak
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay

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Page 324
________________ मांगीबाई की प्रेरणा होती है, वह श्री छाजेड़जी को विवश कर देती है और कहती है आप शरीर की चिन्ता न करें देव गुरू की सेवा बिना पुण्योदय के नहीं मिलती। श्रीमती छाजेड़ श्री छाजेड़जी से ज्यादा व्याद्धियुक्त है, फिर भी वह भी उस समय साथ चलने को तैयार हो जाती है। अभी एक बार मोहनखेड़ा जाएंगे तो चार रोज तक शरीर दर्द करता है। जिससे पाठक जान जाएंगे कि छाजेड़जी के दिल में देव गुरु व धर्म के प्रति कितना समर्पण भाव है। श्री मोहनखेड़ा तीर्थ में ट्रस्ट मंडल में श्री किशोरचन्दजी एम. वर्द्धन कोषाध्यक्ष पद पर हैं, उन्होंने भी छाजेड़जी को (गांधीजी) की उपमा दे रखी है। श्री छाजेड़जी सारी बातें सुनने के बाद अपने चिंतन विचार संक्षेप में सारगर्भित विचार रखते हैं, जो सर्वमान्य हैं। इसका परिणाम है, आज तक ट्रस्ट रजिस्ट्रेशन को १९ वर्ष हो गए ट्रस्ट में. सभी कार्य सर्वानुमति से होते हैं। इससे ज्यादा क्या गौरव की बात हो सकती है। • 'समाज को गर्व है कि आज श्री मोहनखेड़ा ट्रस्ट पर और श्री छाजेड़जी जैसे निर्विवाद नररत्न पर। समाज ऐसे निःस्वार्थ भाव से काम करने वाले व्यक्ति विकास में नींव के पत्थर के समान होते है, जो कार्य को कर्म मानते हैं एवँ प्रतिदिन कार्य में जुटे रहते हैं। ऐसे नररत्नों से समाज शोभायमान होता है और युगों-युगों तक गौरव गान गाता रहता है। ऐसे ही नररत्न श्रेष्ठिर्वय्य कुशल प्रशासक त्रिस्तुतिक समाज के देदीप्यमान नक्षत्र हैं श्री छाजेड़जी ।

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