Book Title: Gunanurag Kulak
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay

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Page 321
________________ उत्तराधिकारी की घोषणा विद्युत की तरह जैसे-जैसे समाज में फैलती गई ऐसे-ऐसे कई प्रकार के उफान समुद्र में ज्वार भाटे की तरह आते हैं, वैसे आते गए। श्री कश्यपजी व श्री छाजेडजी ने उसी समय गुरुआज्ञा को शिरोधार्य करके श्री विद्याविजयजी म. सा. को आचार्य पद के अनुरूप व्यवहार चालू कर दिया। कुछ : समय बाद उपधान तप का माला महोत्सव पूर्ण हो गया। किन्तु दिन प्रतिदिन गुरुदेव श्री का स्वास्थ्य बिगड़ता ही जा रहा था और अचानक पौष सुदि २ की रात्रि को प्रातःकाल ४.२० पर स्वर्गवास हो गया। पौष सुदि २ की रात्रि को १.१५ पर आचार्य श्री ने जयप्रभविजयजी से बात की एवं २.३० पर गुरुदेव श्री ने अंतिम शब्द यह फरमाया था कि विद्या मैं जाता हूँ। उसी समय सम्पूर्ण . मुनिमंडल आचार्य श्री के पास गए थे। पूज्य गुरुदेव श्री ने ॐ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ, राजेन्द्रसूरीश्वर गुरुदेव का स्मरण करते-करते : ४.२० पर स्वर्गसिधार गए। पूज्य आचार्य भगवंत के स्वर्गवास होने पर श्री छाजेड़जी को पूज्यगुरुदेव श्री ने पाटोत्सव की जिम्मेदारी सौंपी थी, इस बात का चिंतन चलते-चलते तीन वर्ष बाद २०२० का फाल्गुन सुदि ३ रविवार १६.२.६४ का शुभ मुहूंत श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का समाधि मंदिर की प्रतिष्ठोत्सव का निश्चय होने पर छाजेड़जी ने समाज के वरिष्ठ श्रावक वर्ग मुनिमण्डल, साध्वी मण्डल से मिलकर जावरा और राजगढ़ के श्रीसंघ के प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श करके यह निर्णय किया कि प्रतिष्ठा महोत्सव के समारोह के साथ आचार्य पद का महोत्सव भी कार्य सम्पन्न कर दिया जाए। अभी तक यह क्रम चला आया है कि मालव प्रांत में त्रिस्तुतिक समाज का कार्य हो तो जावरा श्रीसंघ की

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