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श्री गुणानुरागकुलकम् धर्माचार्य - धर्म और अधर्म का वास्तविक स्वरूप दिखला कर धर्ममार्ग में स्थिर करते हैं और दुर्गतिदायक खोटे मार्गों से बचाकर सुखैषी बनाते हैं।
इसलिये इन पूज्य पुरुषों के उपकार को कभी भूलना नहीं चाहिये। जो पुरुष इनके उपकारों को भूल जाता है, वह कृतघ्न कहलाता है और वह सर्वत्र निन्दा का पात्र बनता है। मनुष्यों को चाहिये कि - पूर्वोक्त उपकारी पुरुषों की शुद्धांतःकरण से सेवा करते रहें और वे जो आज्ञा देवें, उसके अनुसार चलते रहें तथा ऐसा कार्य कभी न करें कि जिससे उनके कुल और कीर्ति को लाञ्छन लगे।
यों तो जन्म पर्यन्त सेवा करने पर भी माँ-बाप कलाचार्य और धर्माचार्य के उपकार रूप ऋण से मुक्त कोई नहीं हो सकता, . परन्तु वे यदि विधर्मी हो या धर्म में उनको किसी तरह की बाधा पड़ती हो, तो उसको मिटाकर शुद्ध धर्म में स्थिर किये जावें तभी उपकार रूप ऋण से मुक्त होना संभव है। अतएव कृतज्ञगुण सम्पन्न मनुष्य ही धर्म के योग्य हो सकता है, न कि कृत उपकारों को भूलने वाला।
२०. परहितार्थकारी - हीन, दीन, दुःखी और संसार दावानल से संतप्त प्राणियों का भला करने वाला परुष धर्म के योग्य अवश्य होता है, क्योंकि परहित करना यही मनुष्यों का यथार्थ धर्म है, जो लोग अनेक विपत्तियाँ सहकर भी परहित करने में कटिबद्ध रहते हैं, उन्हीं का जीवन इस संसार में सफल गिना जाता है।
इस संसार में कई एक मनुष्य नाना भाँति के भोजन करने में, कई एक सुगंधित फूलमालाओं में, कई एक शरीर में चोवा चन्दन वगैरह द्रव्य लगाने में रसिक होते हैं और कई एक गीत (गान)