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श्री गुणानुरागकुलकम्
१०१ का अनुभव कितना किया है? कल्पसूत्र जो प्रत्येक वर्ष पर्युषणा 'महापर्व में बाँचा जाता है, उसमें भी प्रत्यक्ष एक चण्डकौशिक नाग
का दृष्टान्त देख पड़ता है जो कि पूर्वभव में एक क्षुल्लक के ऊपर क्रोध करने से ही मरकर अतिनिकृष्ट तिर्यञ्जयोनिक सर्पजाति में उत्पन्न हुआ। इत्याति आख्यानों का मनन करने से साफ जाहिर होता है कि क्रोध का फल कितना दुःखप्रद और निन्दनीय है, अतः सज्जन महानुभावों! क्रोध को छोंड़ों और क्षमा रूप महागुण को धारण करो, क्योंकि क्षमा से जो कार्य सिद्ध होता है वह क्रोध से नहीं, इसमें कारण यह है कि सम्पूर्ण
कार्य को पार लगाने वाली बुद्धि क्रोध के प्रसंग से नष्ट हो जाती है। इसलिए क्रोध को छोड़कर सर्वांङ्ग सुन्दर क्षमागुण का अवलम्बन करना चाहिए, जिससे कि अनेक सद्गणों की प्राप्ति हो। मान और उसका त्याग - .: मानी मनुष्य के अन्दर विद्या, विनय, विवेक, शील, संयम, सन्तोष आदि उत्तम गुणों का नाश होता है। • प्राप्त हुई वस्तुओं से अहंकार करने को 'मद' और बिना सम्पत्ति के ही केवल अहंकार रखने को 'मान' कहते हैं।
मद आठ हैं - १ जातिमद - मातृपक्ष का अहंकार करना, मेरी माता बड़े घराने की है, दूसरों की माता का तो कुछ ठिकाना नहीं है। २ कुल मद - पितृपक्ष का अभिमान रखना, हमारा पितृ पक्ष उत्तम राजवंशी है, दूसरों का कुल तो नीच है। ३ बलमद -
१. देखो अभिधान राजेन्द्र कोष के पहिले भाग का १८१ पृष्ठ; २ और चौथे भाग का वीर शब्दा