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श्री गुणानुरागकुलकम् हैं। चाहिए तो ऐसा कि सभी गच्छवाले परस्पर मिलकर शासन की उन्नति करने में भाग लें, और यथासंभव एक दूसरे को सहायता दें, क्योंकि यथार्थ में सबका मुख्य उद्देश्य एक ही है।
जब से गच्छों के भयानक झगड़े हुए और एक दूसरे के कार्य में सहायता देना बन्द हुई, तब से अति विशाल जैन समाज का ह्रास होते होते आज इनागिना समाज दृष्टिपथ में आ रहा है। पारस्परिक कुसंप, गच्छों की वाडाबन्धी और जातीय संकुचितवृत्ति से जैनियों की संख्या बीस वर्ष में कितनी घट गई है? इसको जानने के लिए जरा नीचे दी गई तालिका ध्यानपूर्वक वांचो और मनन करो : .
धर्म
सनातनी आर्यसमाजी ब्रह्मसमाजी सिक्ख
सन् १९०१ २०७०,५०,५५७ ९२,४१९ ४,०५० २,१९५,३३९ १३७४,१४८ ९,४७६,७५९ ९४,१९० ६१४५८०७७ २९२३,२४१ ८,५८४,१४८ १२९,८००
सन् १९११ '२१७,३३७,९४३.
२४३,४४५
५,५०४ ३०,१४,४६६
१२४८,१८२ १०,७२१,४५३
१०००९६ ६६,६४७,२९९
३,८७६,२०७ १०,२९५,१६८ . १३७,१०१
। सन् १९२१ २१६,२७०,६२०
४६७,५७८
६,७८८ ९,२३८,८००
११७८,५९६ ११,५७१,२६८
१०१,७७८ ६८,७३५२३३
४,७०४०६४ ९,७७४,६११
१८००४
बौद्ध पारसी मुसलमान ख्रिस्ती
उकलिया
| नाना सम्प्रदायवाले
सन् १९०१ में मर्दुमशुमारी के बाद के बीस वर्षों में आर्यसमाजी पौने चार लाख, बौद्ध अन्दाजन एक बीस लाख, मुसलमान पौने त्रेसठ लाख और क्रिश्चियन अठारह लाख बढ़े। इसी तरह इतर धर्मावलम्बियों की भी ऊपर की तालिका में वृद्धि हुई